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बदल-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार कहाँ से लाऊँ | शाही शायरी
badal-e-lazzat-e-azar kahan se laun

ग़ज़ल

बदल-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार कहाँ से लाऊँ

हसरत मोहानी

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बदल-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार कहाँ से लाऊँ
अब तुझे ऐ सितम-ए-यार कहाँ से लाऊँ

पुर्सिश-ए-हाल पे है ख़ातिर-ए-जानाँ माइल
जुरअत-ए-कोशिश-ए-इज़हार कहाँ से लाऊँ

है वहाँ शान-ए-तग़ाफ़ुल को जफ़ा से भी गुरेज़
इल्तिफ़ात-ए-निगह-ए-यार कहाँ से लाऊँ

नूर अन्क़ा है शब-ए-हिज्र की तारीकी में
जल्वा-ए-सुब्ह के आसार कहाँ से लाऊँ

सोहबत-ए-अहल-ए-सफ़ा ख़ूब है माना लेकिन
रौनक़-ए-ख़ाना-ए-ख़ुम्मार कहाँ से लाऊँ

शेर मेरे भी हैं पुर-दर्द व-लेकिन 'हसरत'
'मीर' का शेवा-ए-गुफ़्तार कहाँ से लाऊँ