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बात बस से निकल चली है | शाही शायरी
baat bas se nikal chali hai

ग़ज़ल

बात बस से निकल चली है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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बात बस से निकल चली है
दिल की हालत सँभल चली है

अब जुनूँ हद से बढ़ चला है
अब तबीअ'त बहल चली है

अश्क ख़ूनाब हो चले हैं
ग़म की रंगत बदल चली है

या यूँही बुझ रही हैं शमएँ
या शब-ए-हिज्र टल चली है

लाख पैग़ाम हो गए हैं
जब सबा एक पल चली है

जाओ अब सो रहो सितारो
दर्द की रात ढल चली है