EN اردو
अश्क मेरे हैं मगर दीदा-ए-नम है उस का | शाही शायरी
ashk mere hain magar dida-e-nam hai us ka

ग़ज़ल

अश्क मेरे हैं मगर दीदा-ए-नम है उस का

बाक़र मेहदी

;

अश्क मेरे हैं मगर दीदा-ए-नम है उस का
ये जो होंटों पे तबस्सुम है करम है उस का

अन-कही बात भला लिक्खूँ तो लिक्खूँ कैसे
सादे काग़ज़ पे कोई राज़ रक़म है उस का

फ़ासले ऐसे कि इक उम्र में तय हो न सकें
क़ुर्बतें ऐसी कि ख़ुद मुझ में जनम है उस का

संग-ओ-आहन का बड़ा शहर भी वीराना लगे
ये जुनूँ मेरा है और दश्त-ए-सितम है उस का

दर्द बन कर मिरे सीने में पड़ा रहता है
ये मिरा दिल है कि इक नक़्श-ए-क़दम है उस का?

एक तूफ़ाँ की तरह कब से किनारा-कश है
फिर भी 'बाक़र' मिरी नज़रों में भरम है उस का