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अपना ग़म ले के कहीं और न जाया जाए | शाही शायरी
apna gham le ke kahin aur na jaya jae

ग़ज़ल

अपना ग़म ले के कहीं और न जाया जाए

निदा फ़ाज़ली

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अपना ग़म ले के कहीं और न जाया जाए
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाए

जिन चराग़ों को हवाओं का कोई ख़ौफ़ नहीं
उन चराग़ों को हवाओं से बचाया जाए

ख़ुद-कुशी करने की हिम्मत नहीं होती सब में
और कुछ दिन अभी औरों को सताया जाए

बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं
किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाए

क्या हुआ शहर को कुछ भी तो दिखाई दे कहीं
यूँ किया जाए कभी ख़ुद को रुलाया जाए

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए