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अच्छी से अच्छी आब-ओ-हवा के बग़ैर भी | शाही शायरी
achchhi se achchhi aab-o-hawa ke baghair bhi

ग़ज़ल

अच्छी से अच्छी आब-ओ-हवा के बग़ैर भी

मुनव्वर राना

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अच्छी से अच्छी आब-ओ-हवा के बग़ैर भी
ज़िंदा हैं कितने लोग दवा के बग़ैर भी

साँसों का कारोबार बदन की ज़रूरतें
सब कुछ तो चल रहा है दुआ के बग़ैर भी

बरसों से इस मकान में रहते हैं चंद लोग
इक दूसरे के साथ वफ़ा के बग़ैर भी

अब ज़िंदगी का कोई भरोसा नहीं रहा
मरने लगे हैं लोग क़ज़ा के बग़ैर भी

हम बे-क़ुसूर लोग भी दिलचस्प लोग हैं
शर्मिंदा हो रहे हैं ख़ता के बग़ैर भी

चारागरी बताए अगर कुछ इलाज है
दिल टूटने लगे हैं सदा के बग़ैर भी