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अच्छी नहीं ये ख़ामुशी शिकवा करो गिला करो | शाही शायरी
achchhi nahin ye KHamushi shikwa karo gila karo

ग़ज़ल

अच्छी नहीं ये ख़ामुशी शिकवा करो गिला करो

निदा फ़ाज़ली

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अच्छी नहीं ये ख़ामुशी शिकवा करो गिला करो
यूँ भी न कर सको तो फिर घर में ख़ुदा ख़ुदा करो

शोहरत भी उस के साथ है दौलत भी उस के हाथ है
ख़ुद से भी वो मिले कभी उस के लिए दुआ करो

देखो ये शहर है अजब दिल भी नहीं है कम ग़ज़ब
शाम को घर जो आऊँ मैं थोड़ा सा सज लिया करो

दिल में जिसे बसाओ तुम चाँद उसे बनाओ तुम
वो जो कहे पढ़ा करो जो न कहे सुना करो

मेरी नशिस्त पे भी कल आएगा कोई दूसरा
तुम भी बना के रास्ता मेरे लिए जगह करो