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अब टूटने ही वाला है तन्हाई का हिसार | शाही शायरी
ab TuTne hi wala hai tanhai ka hisar

ग़ज़ल

अब टूटने ही वाला है तन्हाई का हिसार

आदिल मंसूरी

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अब टूटने ही वाला है तन्हाई का हिसार
इक शख़्स चीख़ता है समुंदर के आर-पार

आँखों से राह निकली है तहतुश-शुऊर तक
रग रग में रेंगता है सुलगता हुआ ख़ुमार

गिरते रहे नुजूम अँधेरे की ज़ुल्फ़ से
शब भर रहीं ख़मोशियाँ सायों से हम-कनार

दीवार-ओ-दर पे ख़ुशबू के हाले बिखर गए
तन्हाई के फ़रिश्तों ने चूमी क़बा-ए-यार

कब तक पड़े रहोगे हवाओं के हाथ में
कब तक चलेगा खोखले शब्दों का कारोबार