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आओ तुम ही करो मसीहाई | शाही शायरी
aao tum hi karo masihai

ग़ज़ल

आओ तुम ही करो मसीहाई

उबैदुल्लाह अलीम

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आओ तुम ही करो मसीहाई
अब बहलती नहीं है तन्हाई

तुम गए थे तो साथ ले जाते
अब ये किस काम की है बीनाई

हम कि थे लज़्ज़त-ए-हयात में गुम
जाँ से इक मौज-ए-तिश्नगी आई

हम-सफ़र ख़ुश न हो मोहब्बत से
जाने हम किस के हों तमन्नाई

कोई दीवाना कहता जाता था
ज़िंदगी ये नहीं मिरे भाई

अव्वल-ए-इश्क़ में ख़बर भी न थी
इज़्ज़तें बख़्शती है रुस्वाई

कैसे पाओ मुझे जो तुम देखो
सतह-ए-साहिल से मेरी गहराई

जिन में हम खेल कर जवान हुए
वही गलियाँ हुईं तमाशाई