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आँखों से तिरी ज़ुल्फ़ का साया नहीं जाता | शाही शायरी
aankhon se teri zulf ka saya nahin jata

ग़ज़ल

आँखों से तिरी ज़ुल्फ़ का साया नहीं जाता

अब्दुल हमीद अदम

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आँखों से तिरी ज़ुल्फ़ का साया नहीं जाता
आराम जो देखा है भुलाया नहीं जाता

अल्लाह-रे नादान जवानी की उमंगें!
जैसे कोई बाज़ार सजाया नहीं जाता

आँखों से पिलाते रहो साग़र में न डालो
अब हम से कोई जाम उठाया नहीं जाता

बोले कोई हँस कर तो छिड़क देते हैं जाँ भी
लेकिन कोई रूठे तो मनाया नहीं जाता

जिस तार को छेड़ें वही फ़रियाद-ब-लब है
अब हम से 'अदम' साज़ बजाया नहीं जाता