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आँखों को फोड़ डालूँ या दिल को तोड़ डालूँ | शाही शायरी
aankhon ko phoD Dalun ya dil ko toD Dalun

ग़ज़ल

आँखों को फोड़ डालूँ या दिल को तोड़ डालूँ

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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आँखों को फोड़ डालूँ या दिल को तोड़ डालूँ
या इश्क़ की पकड़ कर गर्दन मरोड़ डालूँ

यक-क़तरा ख़ूँ बग़ल में है दिल मिरी सो उस को
पलकों से तेरी ख़ातिर क्यूँ-कर निचोड़ डालूँ

वो आहू-ए-रमीदा मिल जाए तीरा-शब गर
कुत्ता बनूँ शिकारी उस को भंभोड़ डालूँ

ख़य्यात ने क़ज़ा के जामा सिया जो मेरा
आया न जी में इतना क्या इस में जोड़ डालूँ

वो संग-दिल हुआ है इक संग-दिल पे आशिक़
आता है जी में सर को पत्थरों से फोड़ डालूँ

बैठा हूँ ख़ाली आख़िर ऐ आँसुओ करूँ क्या
दो चार गोखरो ही लाओ न मोड़ डालूँ

तक़्सीर 'मुसहफ़ी' की होवे मुआफ़ साहिब
फ़रमाओ तो तुम्हारे ला उस को गोड़ डालूँ