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आँख उन को देखती है नज़ारा किए बग़ैर | शाही शायरी
aankh un ko dekhti hai nazara kiye baghair

ग़ज़ल

आँख उन को देखती है नज़ारा किए बग़ैर

शकील बदायुनी

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आँख उन को देखती है नज़ारा किए बग़ैर
पर्दे में छुप गए हैं वो पर्दा किए बग़ैर

हर-चंद दर्द-ए-इश्क़ का दरमाँ नहीं मगर
बनती नहीं है फ़िक्र-ए-मुदावा किए बग़ैर

ज़ाहिद से पूछिए ग़म-ए-दुनिया की अज़्मतें
उक़्बा न मिल सकी ग़म-ए-दुनिया किए बग़ैर

जाते हैं दिल में छोड़ के वो जल्वा-ए-ख़याल
बुझती है शम्अ' घर में अंधेरा किए बग़ैर

अक्सर तो दिल गिरफ़्तगी-ए-शौक़ की क़सम
मुझ तक वो आ गए हैं इरादा किए बग़ैर

हम को भी देखना है कि ये मुनकरीन-ए-इश्क़
कब तक रहेंगे तेरी तमन्ना किए बग़ैर

शेर-ओ-अदब की राह में है गामज़न 'शकील'
अपने मुख़ालिफ़ीन की पर्वा किए बग़ैर