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आलम-सक्र में जो कहता हूँ कहने दे मुझे | शाही शायरी
aalam-e-sakr mein jo kahta hun kahne de mujhe

ग़ज़ल

आलम-सक्र में जो कहता हूँ कहने दे मुझे

ख़ुर्शीद रिज़वी

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आलम-सक्र में जो कहता हूँ कहने दे मुझे
मेरे अंदर तो यही कुछ है सो रहने दे मुझे

आ कभी लम्स को यकसर नज़र-अंदाज़ करें
आँख से आँख मिला ख़ून में बहने दे मुझे

दूर जा कर भी मिरी रूह में मौजूद न रह
तू कभी अपनी जुदाई भी तो सहने दे मुझे

तू मुझे बनते बिगड़ते हुए अब ग़ौर से देख
वक़्त कल चाक पे रहने दे न रहने दे मुझे

जान-ए-'ख़ुर्शीद' मुझे साए से महरूम न रख
मैं गहन में अगर आता हूँ तो गहने दे मुझे