EN اردو
आख़िरी वक़्त है आख़िरी साँस है ज़िंदगी की है शाम आख़िरी आख़िरी | शाही शायरी
aaKHiri waqt hai aaKHiri sans hai zindagi ki hai sham aaKHiri aaKHiri

ग़ज़ल

आख़िरी वक़्त है आख़िरी साँस है ज़िंदगी की है शाम आख़िरी आख़िरी

शकील बदायुनी

;

आख़िरी वक़्त है आख़िरी साँस है ज़िंदगी की है शाम आख़िरी आख़िरी
संग-दिल आ भी जा अब ख़ुदा के लिए लब पे है तेरा नाम आख़िरी आख़िरी

कुछ तो आसान होगा अदम का सफ़र उन से कहना तुम्हें ढूँढती है नज़र
नामा-बर तू ख़ुदारा न अब देर कर दे दे उन को पयाम आख़िरी आख़िरी

तौबा करता हूँ कल से पियूँगा नहीं मय-कशी के सहारे जियूँगा नहीं
मेरी तौबा से पहले मगर साक़िया सिर्फ़ दे एक जाम आख़िरी आख़िरी

मुझ को यारों ने नहला के कफ़ना दिया दो घड़ी भी न बीती कि दफ़ना दिया
कौन करता है ग़म टूटते ही ये दम कर दिया इंतिज़ाम आख़िरी आख़िरी

जीते-जी क़द्र मेरी किसी ने न की ज़िंदगी भी मिरी बेवफ़ा हो गई
दुनिया वालो मुबारक ये दुनिया तुम्हें कर चले हम सलाम आख़िरी आख़िरी