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आज ख़ूँ हो के टपक पड़ने के नज़दीक है दिल | शाही शायरी
aaj KHun ho ke Tapak paDne ke nazdik hai dil

ग़ज़ल

आज ख़ूँ हो के टपक पड़ने के नज़दीक है दिल

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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आज ख़ूँ हो के टपक पड़ने के नज़दीक है दिल
नोक-ए-नश्तर हो तो हाँ क़ाबिल-ए-तहरीक है दिल

ऐ फ़लक तुझ को क़सम है मिरी इस को न बुझा
कि ग़रीबों को चराग़-ए-शब-ए-तारीक है दिल

वरम-ए-दाग़ कई सामने रख कर उस के
इश्क़ बोला ''ये उठा ले तिरी तम्लीक है दिल''

मुझ को हैरत है कि की उम्र बसर उस ने कहाँ
इस जहालत पे तो ने तुर्क न ताजीक है दिल

कमर-ए-यार के मज़कूर को जाने दे मियाँ
तू क़दम इस में न रख राह ये बारीक है दिल

जामा-ए-दाग़ को मल्बूस कर अपना दिन रात
क्यूँकि ये जामा तिरे क़द पे निपट ठीक है दिल

'मुसहफ़ी' इक तो मैं हूँ दस्त-ख़ुश-ए-दीदा-ए-शोख़
तिस पे दिन रात मिरे दरपय-ए-तज़हीक है दिल