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आह देखी थी मैं जिस घर में परी की सूरत | शाही शायरी
aah dekhi thi main jis ghar mein pari ki surat

ग़ज़ल

आह देखी थी मैं जिस घर में परी की सूरत

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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आह देखी थी मैं जिस घर में परी की सूरत
अब नज़र आए है वाँ नौहागरी की सूरत

न वो अंदाज़ न आवाज़ न इश्वा न अदा
यक-ब-यक मिट गई यूँ जल्वागरी की सूरत

अब ख़याल उस का वहाँ आँखों में फिरता है मिरी
कोई फिरता था जहाँ कब्क-ए-दरी की सूरत

उस के जाने से मिरा दिल है मिरे सीने में
दम का मेहमान चराग़-ए-सहरी की सूरत

ने ख़बर उस को मिरी पहुँचे है ने उस की मुझे
बंध गई है अजब इक बे-ख़बरी की सूरत

नाम लूँ किस का कि इक गुल के लिए जाते हैं
अश्क आँखों से अक़ीक़-ए-जिगरी की सूरत

'मुसहफ़ी' है यही अब सोच कि देखें तो फ़लक
फिर भी दिखलाएगा यार-ए-सफ़री की सूरत