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आ गई याद शाम ढलते ही | शाही शायरी
aa gai yaad sham Dhalte hi

ग़ज़ल

आ गई याद शाम ढलते ही

मुनीर नियाज़ी

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आ गई याद शाम ढलते ही
बुझ गया दिल चराग़ जलते ही

खुल गए शहर-ए-ग़म के दरवाज़े
इक ज़रा सी हवा के चलते ही

कौन था तू कि फिर न देखा तुझे
मिट गया ख़्वाब आँख मलते ही

ख़ौफ़ आता है अपने ही घर से
माह-ए-शब-ताब के निकलते ही

तू भी जैसे बदल सा जाता है
अक्स-ए-दीवार के बदलते ही

ख़ून सा लग गया है हाथों में
चढ़ गया ज़हर गुल मसलते ही