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वीरानी शायरी | शाही शायरी

वीरानी

17 शेर

बस्तियाँ कुछ हुईं वीरान तो मातम कैसा
कुछ ख़राबे भी तो आबाद हुआ करते हैं

आल-ए-अहमद सूरूर




बना रक्खी हैं दीवारों पे तस्वीरें परिंदों की
वगर्ना हम तो अपने घर की वीरानी से मर जाएँ

अफ़ज़ल ख़ान




इतनी सारी यादों के होते भी जब दिल में
वीरानी होती है तो हैरानी होती है

अफ़ज़ल ख़ान




बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत वहशत की है धूप 'ज़िया'
चारों जानिब वीरानी है दिल का इक वीराना क्या

अहमद ज़िया




चमन में रहने वालों से तो हम सहरा-नशीं अच्छे
बहार आ के चली जाती है वीरानी नहीं जाती

we desert dwellers have a stable state
compared to those that in gardens stay

अख़्तर शीरानी




दूर तक दिल में दिखाई नहीं देता कोई
ऐसे वीराने में अब किस को सदा दी जाए

अली अहमद जलीली




किस ने आबाद किया है मरी वीरानी को
इश्क़ ने? इश्क़ तो बीमार पड़ा है मुझ में

अंजुम सलीमी