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धार्मिक सद्भावना शायरी | शाही शायरी

धार्मिक सद्भावना

5 शेर

है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़
अहल-ए-नज़र समझते हैं उस को इमाम-ए-हिंद

अल्लामा इक़बाल




मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा

अल्लामा इक़बाल




मेरा मज़हब इश्क़ का मज़हब जिस में कोई तफ़रीक़ नहीं
मेरे हल्क़े में आते हैं 'तुलसी' भी और 'जामी' भी

क़ैशर शमीम




सुनो हिन्दू मुसलमानो कि फ़ैज़-ए-इश्क़ से 'हातिम'
हुआ आज़ाद क़ैद-ए-मज़हब-ओ-मशरब से अब फ़ारिग़

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




ये किस मज़हब में और मशरब में है हिन्दू मुसलमानो
ख़ुदा को छोड़ दिल में उल्फ़त-ए-दैर-ओ-हरम रखना

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम