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मोहब्बत शायरी | शाही शायरी

मोहब्बत

406 शेर

जिस को हम ने चाहा था वो कहीं नहीं इस मंज़र में
जिस ने हम को प्यार किया वो सामने वाली मूरत है

ऐतबार साजिद




बस एक ही बला है मोहब्बत कहें जिसे
वो पानियों में आग लगाती है आज भी

अजीत सिंह हसरत




इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता

अकबर इलाहाबादी




मोहब्बत का तुम से असर क्या कहूँ
नज़र मिल गई दिल धड़कने लगा

अकबर इलाहाबादी




हाँ कभी ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
अब तक आँखों से ख़ूँ टपकता है

अख़्तर अंसारी




जब से मुँह को लग गई 'अख़्तर' मोहब्बत की शराब
बे-पिए आठों पहर मदहोश रहना आ गया

अख़्तर अंसारी




किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में
मिरे नसीब में तुम भी नहीं ख़ुदा भी नहीं

अख़्तर सईद ख़ान