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मीर ताकी मीर शायरी | शाही शायरी

मीर ताकी मीर

12 शेर

मैं हूँ क्या चीज़ जो उस तर्ज़ पे जाऊँ 'अकबर'
'नासिख़' ओ 'ज़ौक़' भी जब चल न सके 'मीर' के साथ

अकबर इलाहाबादी




'हाली' सुख़न में 'शेफ़्ता' से मुस्तफ़ीद है
'ग़ालिब' का मो'तक़िद है मुक़ल्लिद है 'मीर' का

अल्ताफ़ हुसैन हाली




'मीर' का रंग बरतना नहीं आसाँ ऐ 'दाग़'
अपने दीवाँ से मिला देखिए दीवाँ उन का

दाग़ देहलवी




'दाग़' के शेर जवानी में भले लगते हैं
'मीर' की कोई ग़ज़ल गाओ कि कुछ चैन पड़े

गणेश बिहारी तर्ज़




सिर्फ़ ज़बाँ की नक़्क़ाली से बात न बन पाएगी 'हफ़ीज़'
दिल पर कारी चोट लगे तो 'मीर' का लहजा आए है

हफ़ीज़ मेरठी




'इक़बाल' की नवा से मुशर्रफ़ है गो 'नईम'
उर्दू के सर पे 'मीर' की ग़ज़लों का ताज है

हसन नईम




गुज़रे बहुत उस्ताद मगर रंग-ए-असर में
बे-मिस्ल है 'हसरत' सुख़न-ए-'मीर' अभी तक

हसरत मोहानी