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Majburi शायरी | शाही शायरी

Majburi

15 शेर

नाकाम हैं असर से दुआएँ दुआ से हम
मजबूर हैं कि लड़ नहीं सकते ख़ुदा से हम

अहसन मारहरवी




ये मेरे इश्क़ की मजबूरियाँ मआज़-अल्लाह
तुम्हारा राज़ तुम्हीं से छुपा रहा हूँ मैं

असरार-उल-हक़ मजाज़




न-जाने कौन सी मजबूरियाँ हैं जिन के लिए
ख़ुद अपनी ज़ात से इंकार करना पड़ता है

अतहर नासिक




कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता

she would have had compulsions surely
faithless without cause no one can be

बशीर बद्र




ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं
हाए इस क़ैद को ज़ंजीर भी दरकार नहीं

फ़ानी बदायुनी




मिरी मजबूरियाँ क्या पूछते हो
कि जीने के लिए मजबूर हूँ मैं

हफ़ीज़ जालंधरी




दरिया दरिया घूमे माँझी पेट की आग बुझाने
पेट की आग में जलने वाला किस किस को पहचाने

जमीलुद्दीन आली