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इंकलाब शायरी | शाही शायरी

इंकलाब

6 शेर

हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे
जो दिल पे गुज़रती है रक़म करते रहेंगे

We will nourish the pen and tablet; we will tend them ever
We will write what the heart suffers; we will defend them eve

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़




देख रफ़्तार-ए-इंक़लाब 'फ़िराक़'
कितनी आहिस्ता और कितनी तेज़

फ़िराक़ गोरखपुरी




कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे
हर ज़माने में शहादत के यही अस्बाब थे

हसन नईम




काम है मेरा तग़य्युर नाम है मेरा शबाब
मेरा ना'रा इंक़िलाब ओ इंक़िलाब ओ इंक़िलाब

जोश मलीहाबादी




कोई तो सूद चुकाए कोई तो ज़िम्मा ले
उस इंक़लाब का जो आज तक उधार सा है

कैफ़ी आज़मी




सुतून-ए-दार पे रखते चलो सरों के चराग़
जहाँ तलक ये सितम की सियाह रात चले

मजरूह सुल्तानपुरी