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हुनर शायरी | शाही शायरी

हुनर

3 शेर

जिस की ख़ातिर मैं भुला बैठा था अपने आप को
अब उसी के भूल जाने का हुनर भी देखना

अताउल हक़ क़ासमी




मुझ में थे जितने ऐब वो मेरे क़लम ने लिख दिए
मुझ में था जितना हुस्न वो मेरे हुनर में गुम हुआ

हकीम मंज़ूर




ख़ूबान-ए-जहाँ हों जिस से तस्ख़ीर
ऐसा कोई हम ने हुनर न देखा

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम