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Girya-ओ-जरी शायरी | शाही शायरी

Girya-ओ-जरी

5 शेर

सोज़-ए-ग़म से अश्क का एक एक क़तरा जल गया
आग पानी में लगी ऐसी कि दरिया जल गया

अज़ीज़ लखनवी




ज़ब्त-ए-गिर्या कभी करता हूँ तो फ़रमाते हैं
आज क्या बात है बरसात नहीं होती है

हफ़ीज़ जालंधरी




रोने पे अगर आऊँ तो दरिया को डुबो दूँ
क़तरा कोई समझे न मिरे दीदा-ए-नम को

लाला माधव राम जौहर




रात दिन जारी हैं कुछ पैदा नहीं इन का कनार
मेरे चश्मों का दो-आबा मजम-उल-बहरैन है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




क्या कहूँ दीदा-ए-तर ये तो मिरा चेहरा है
संग कट जाते हैं बारिश की जहाँ धार गिरे

शकेब जलाली