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जनतंत्र शायरी | शाही शायरी

जनतंत्र

1 शेर

जम्हूरियत इक तर्ज़-ए-हुकूमत है कि जिस में
बंदों को गिना करते हैं तौला नहीं करते

अल्लामा इक़बाल