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उम्मीद फ़ाज़ली शायरी | शाही शायरी

उम्मीद फ़ाज़ली शेर

13 शेर

सुकूत वो भी मुसलसल सुकूत क्या मअनी
कहीं यही तिरा अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू तो नहीं

उम्मीद फ़ाज़ली




तिरी तलाश में जाने कहाँ भटक जाऊँ
सफ़र में दश्त भी आता है घर भी आता है

उम्मीद फ़ाज़ली




वो ख़्वाब ही सही पेश-ए-नज़र तो अब भी है
बिछड़ने वाला शरीक-ए-सफ़र तो अब भी है

उम्मीद फ़ाज़ली




ये ख़ुद-फ़रेबी-ए-एहसास-ए-आरज़ू तो नहीं
तिरी तलाश कहीं अपनी जुस्तुजू तो नहीं

उम्मीद फ़ाज़ली