सुकूत वो भी मुसलसल सुकूत क्या मअनी
कहीं यही तिरा अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू तो नहीं
उम्मीद फ़ाज़ली
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तिरी तलाश में जाने कहाँ भटक जाऊँ
सफ़र में दश्त भी आता है घर भी आता है
उम्मीद फ़ाज़ली
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वो ख़्वाब ही सही पेश-ए-नज़र तो अब भी है
बिछड़ने वाला शरीक-ए-सफ़र तो अब भी है
उम्मीद फ़ाज़ली
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ये ख़ुद-फ़रेबी-ए-एहसास-ए-आरज़ू तो नहीं
तिरी तलाश कहीं अपनी जुस्तुजू तो नहीं
उम्मीद फ़ाज़ली
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