कहीं भी ताइर-ए-आवारा हो मगर तय है 
जिधर कमाँ है उधर जाएगा कभी न कभी
सय्यद अमीन अशरफ़
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                कहीं पे दस्त-ए-निगारीं कहीं लब-ए-ल'अलीं 
वो सोते सोते मिरी नींद का उचट जाना
सय्यद अमीन अशरफ़
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                किसी से इश्क़ हो जाने को अफ़्साना नहीं कहते 
कि अफ़्साने मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार होते हैं
सय्यद अमीन अशरफ़
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                लज़्ज़त-ए-दीद ख़ुदा जाने कहाँ ले जाए 
आँख होती है तो होता नहीं क़ाबू दिल पर
सय्यद अमीन अशरफ़
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                मैं देखता हूँ फ़राज़-ए-जुनूँ से दुनिया को 
कि सहल भी नहीं शायान-ए-आरज़ू होना
सय्यद अमीन अशरफ़
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                मैं पर-शिकस्ता न था बादलों के बीच मगर 
मिरी उड़ान का ज़ंजीर से लिपट जाना
सय्यद अमीन अशरफ़
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