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पीरज़ादा क़ासीम शायरी | शाही शायरी

पीरज़ादा क़ासीम शेर

4 शेर

इक सज़ा और असीरों को सुना दी जाए
यानी अब जुर्म-ए-असीरी की सज़ा दी जाए

पीरज़ादा क़ासीम




शहर तलब करे अगर तुम से इलाज-ए-तीरगी
साहिब-ए-इख़्तियार हो आग लगा दिया करो

पीरज़ादा क़ासीम




तुम्हें जफ़ा से न यूँ बाज़ आना चाहिए था
अभी कुछ और मिरा दिल दुखाना चाहिए था

पीरज़ादा क़ासीम




उस की ख़्वाहिश है कि अब लोग न रोएँ न हँसें
बे-हिसी वक़्त की आवाज़ बना दी जाए

पीरज़ादा क़ासीम