तर्क-ए-जाम-ओ-सुबू न कर पाए
इस लिए हम वज़ू न कर पाए
लईक़ आजिज़
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वो धूप थी कि ज़मीं जल के राख हो जाती
बरस के अब के बड़ा काम कर गया पानी
लईक़ आजिज़
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