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अनवर मिर्ज़ापुरी शायरी | शाही शायरी

अनवर मिर्ज़ापुरी शेर

7 शेर

अभी रात कुछ है बाक़ी न उठा नक़ाब साक़ी
तिरा रिंद गिरते गिरते कहीं फिर सँभल न जाए

as yet the night does linger on do not remove your veil
lest your besotten follower re-gains stability

अनवर मिर्ज़ापुरी




ऐ काश हमारी क़िस्मत में ऐसी भी कोई शाम आ जाए
इक चाँद फ़लक पर निकला हो इक चाँद सर-ए-बाम आ जाए

अनवर मिर्ज़ापुरी




अकेला पा के मुझ को याद उन की आ तो जाती है
मगर फिर लौट कर जाती नहीं मैं कैसे सो जाऊँ

अनवर मिर्ज़ापुरी




मैं ख़ुश हूँ अगर गुलशन के लिए कुछ मेरा लहू काम आ जाए
लेकिन मुझ को डर है इस का गुलचीं पे न इल्ज़ाम आ जाए

अनवर मिर्ज़ापुरी




मैं नज़र से पी रहा हूँ ये समाँ बदल न जाए
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए

i am feasting from thine eyes, pray let this aspect be
lower not your eyes my love, or else this night may flee

अनवर मिर्ज़ापुरी




मिरे अश्क भी हैं इस में ये शराब उबल न जाए
मिरा जाम छूने वाले तिरा हाथ जल न जाए

my tears too this does contain,this wine may start to boil
be careful for my goblet burns with rare intensity

अनवर मिर्ज़ापुरी




मुझे फूँकने से पहले मिरा दिल निकाल लेना
ये किसी की है अमानत मिरे साथ जल न जाए

please remove my heart before i am consigned to flames
As it belongs to someone else it should not burn with me

अनवर मिर्ज़ापुरी