हाँ ये भी तरीक़ा अच्छा है तुम ख़्वाब में मिलते हो मुझ से
आते भी नहीं ग़म-ख़ाने तक वादा भी वफ़ा हो जाता है
अख़तर मुस्लिमी
फ़रेब-ख़ुर्दा है इतना कि मेरे दिल को अभी
तुम आ चुके हो मगर इंतिज़ार बाक़ी है
अख़तर मुस्लिमी
एक ही अंजाम है ऐ दोस्त हुस्न ओ इश्क़ का
शम्अ भी बुझती है परवानों के जल जाने के ब'अद
अख़तर मुस्लिमी
दी उस ने मुझ को जुर्म-ए-मोहब्बत की वो सज़ा
कुछ बे-क़ुसूर लोग सज़ा माँगने लगे
अख़तर मुस्लिमी
देहात के बसने वाले तो इख़्लास के पैकर होते हैं
ऐ काश नई तहज़ीब की रौ शहरों से न आती गाँव में
अख़तर मुस्लिमी
अश्क वो है जो रहे आँख में गौहर बन कर
और टूटे तो बिखर जाए नगीनों की तरह
अख़तर मुस्लिमी