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अहमद ज़िया शायरी | शाही शायरी

अहमद ज़िया शेर

8 शेर

आँधियों की ज़द में है मेरा वजूद
और मैं दीवार की तस्वीर हूँ

अहमद ज़िया




बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत वहशत की है धूप 'ज़िया'
चारों जानिब वीरानी है दिल का इक वीराना क्या

अहमद ज़िया




है मेरा चेहरा सैकड़ों चेहरों का आईना
बेज़ार हो गया हूँ तमाशाइयों से मैं

अहमद ज़िया




इक मैं हूँ कि लहरों की तरह चैन नहीं है
इक वो है कि ख़ामोश समुंदर की तरह है

अहमद ज़िया




इस क़दर पुर-ख़ुलूस लहजा है
उस से मिलना है उम्र भर जैसे

अहमद ज़िया




मुझ को मिरे वजूद से कोई निकाल दे
तंग आ चुका हूँ रोज़ के इन हादसों से मैं

अहमद ज़िया




न जाने कितने मराहिल के ब'अद पाया था
वो एक लम्हा जो तू ने गुज़ारने न दिया

अहमद ज़िया




नगर नगर में नई बस्तियाँ बसाई गईं
हज़ार चाहा मगर फिर भी अपना घर न बना

अहमद ज़िया