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अफ़रोज़ आलम शायरी | शाही शायरी

अफ़रोज़ आलम शेर

3 शेर

मैं ज़ेहनी तौर से आज़ाद होने लगता हूँ
मिरे शुऊर मुझे अपनी हद के अंदर खींच

अफ़रोज़ आलम




ये खुला जिस्म खुले बाल ये हल्के मल्बूस
तुम नई सुब्ह का आग़ाज़ करोगे शायद

अफ़रोज़ आलम




ये खुला जिस्म खुले बाल ये हल्के मल्बूस
तुम नई सुब्ह का आग़ाज़ करोगे शायद

अफ़रोज़ आलम