तबीअत की मुश्किल-पसंदी तो देखो
हसीनों से तर्क-ए-वफ़ा चाहता हूँ
आसी ग़ाज़ीपुरी
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वो कहते हैं मैं ज़िंदगानी हूँ तेरी
ये सच है तो उन का भरोसा नहीं है
आसी ग़ाज़ीपुरी
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वो ख़त वो चेहरा वो ज़ुल्फ़-ए-सियाह तो देखो
कि शाम सुब्ह के बाद आए सुब्ह शाम के बाद
आसी ग़ाज़ीपुरी
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वो फिर वादा मिलने का करते हैं यानी
अभी कुछ दिनों हम को जीना पड़ेगा
आसी ग़ाज़ीपुरी
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